KUNDLI KA PRATHAM BHAV कुंडली का लग्न भाव का फल
*जन्म कुंडली में प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है एवं उसके स्वामी को लग्नेश कहते हैं ।*
💥 जन्म कुंडली के प्रथम भाव में जो अंक लिखा होता है उस अंक से संबंधित लग्न की आपकी कुंडली होती है ।
यदि प्रथम भाव में
1 लिखा है अर्थात मेष ARIES लग्न की कुंडली है ।
2 - वृष Taurus
3 - मिथुन Gemini
, 4 - कर्क Cancer
5 - सिंह Leo
6 - कन्या Virgo
7 - तुला Libra
8 - वृश्चिक Scorpio
9 - धनु Sagittarius
10 मकर Capricorn
11 - कुम्भ Capricorn
12 - मीन Pisces
👉जन्म से जो जो वस्तुएं मनुष्य को प्राप्त होती हैं उन सब का विचार प्रथम भाव से किया जाता है । जैसे शारीरिक स्वास्थ्य , आयु , रंग- रूप , कद – आकृति , स्वभाव , सुख , समृद्धि , यश , मान - सम्मान , आजीविका इत्यादि ।
👉सामान्यतः जिस लग्न की कुंडली होती है उस लग्न राशि के अनुसार व्यक्ति का शारीरिक बनावट एवं स्वभाव इत्यादि होते हैं , परंतु यदि लग्न या लग्नेश पर दूसरे ग्रहों की दृष्टि युक्ति का संबंध हो तो जो लग्न राशि का स्वभाव होता है उसमें परिवर्तन हो जाता है । जैसे किसी व्यक्ति की मेष लग्न की कुंडली है जो सामान्यतः मेष राशि के जो गुण होते हैं वह रहेंगे परंतु यदि मेष लग्न में कोई और ग्रह विराजमान हो या दृष्टि हो या मेष राशि के स्वामी मंगल के साथ कोई दूसरे ग्रहों का संबंध बन रहा हो तो मेष राशि का जो स्वभाव है या जो उसके गुण है उसमें बाकी ग्रहों के अनुसार परिवर्तन हो जाते हैं ।
इसलिए कई बार जिस लग्न की हमारी कुंडली होती है उस लग्न से संबंधित गुण हमारे जीवन से नहीं मिलते हैं । जैसे लंबाई देने वाले ग्रहों की दृष्टि लग्न में पड़ती हो या लग्न में विराजमान हो तो ऐसे व्यक्ति लंबे हो जाते हैं । इसी प्रकार से ग्रहों की दृष्टि या ग्रह के विराजमान होने से रंग- रूप आकृति बदल जाती है ।
👉जन्म कुंडली में चाहे कितने भी अच्छे योग हो परंतु लग्नेश कमजोर या पीड़ित हो तो जीवन में पूर्णतः मान- सम्मान , सुख - समृद्धि प्राप्त नहीं होती है ।
👉जन्म कुंडली में सबसे पहले लग्न एवं लग्नेश को ही देखा जाता है । किसी भी लग्न की कुंडली में लग्नेश की स्थिति अच्छी होनी चाहिए ।
👉 लग्नेश यदि लग्न के स्वामी के साथ षष्ठ भाव या अष्टम भाव या द्वादश भाव का स्वामी हो उसको इन आकारक भाव का दोष नहीं लगता है ।
👉 यदि लग्नेश नीच राशि में हो , या छठे , आठवें , बरहवें भाव में हो तो ( कुंडली का विश्लेषण कर के ) उसका रत्न धारण करने में कोई समस्या नहीं होती है । ऐसी स्थिति में उसका रत्न धारण करना चाहिए । इसमे डरने वाली कोई बात नहीं है ।
👉किसी भी लग्न का स्वामी यदि कमजोर या पीड़ित होता है तो उससे संबंधित रोग होने की संभावना ज्यादा रहती है । जैसे किसी का लग्नेश शनि है और यदि पीड़ित होगा तो ऐसे व्यक्ति को वात रोग होने की संभावना ज्यादा रहेगी ।
जैसे सिंह लग्न ( राशि )का स्वामी सूर्य है और सूर्य पीड़ित हो जाए तो हड्डी से संबंधित या आंखों से संबंधित या हृदय से संबंधित बीमारी होने की संभावना ज्यादा रहती है । ( पहले के लेख में सभी ग्रहों से संबन्धित रोग के बारे में चर्चा कर चुका हूँ )।
👉 लग्न में जो ग्रह विराजमान होते हैं या जिन ग्रहों की दृष्टि होती है उससे संबंधित रोजगार करने पर भी सफलता प्राप्त होती है ।
💥 कुंडली का प्रथम भाव से और भी परिवार के विषय में सामान्य जानकारी प्राप्त किया जा सकता है ।
प्रथम भाव माता के पिता ( नाना ) का स्थान होता है । पिता के माता ( दादी ) का स्थान होता है । छोटे भाई - बहन के आमदनी का स्थान होता है । पुत्र के भाग्य का स्थान होता है ।